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आडवाणी को नेहरू के बराबर खड़ा कर घिर गए थरूर, कांग्रेस में फिर घमासान! क्या है इस बयान के पीछे का सियासी दांव?

Shashi Tharoor News: कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने लालकृष्ण आडवाणी की राजनीतिक विरासत का बचाव करते हुए कहा कि उन्हें सिर्फ एक घटना से नहीं आंका जा सकता. थरूर ने उनकी तुलना नेहरू और इंदिरा गांधी से की, जिसके बाद कांग्रेस में घमासान मच गया. पार्टी ने बयान से दूरी बनाई, जबकि सोशल मीडिया पर इसको लेकर तीखी बहस छिड़ गई।

नई दिल्ली: कांग्रेस सांसद शशि थरूर एक बार फिर अपने बयान को लेकर सियासी हलचल के केंद्र में हैं. इस बार उन्होंने बीजेपी के वरिष्ठ नेता और पूर्व उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी की राजनीतिक विरासत का बचाव करते हुए कहा कि “आडवाणी को सिर्फ एक घटना से नहीं आंका जा सकता,” जैसे नेहरू या इंदिरा गांधी के दशकों लंबे सार्वजनिक जीवन को भी किसी एक घटना से नहीं परिभाषित किया जा सकता।

थरूर का यह बयान आते ही राजनीतिक गलियारों में बवाल मच गया. जहां बीजेपी नेताओं ने इसे “राजनीतिक परिपक्वता” बताया. वहीं कांग्रेस के भीतर असहजता साफ झलकने लगी. पार्टी प्रवक्ता पवन खेड़ा ने कहा कि “थरूर के विचार निजी हैं, पार्टी उनसे सहमत नहीं है.” अब सवाल उठ रहा है कि क्या थरूर ने यह बयान सोच-समझकर दिया है या यह उनकी पुरानी ‘असहज ईमानदारी’ की मिसाल है?

थरूर ने क्या की टिप्पणी

थरूर ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर लिखा, “आडवाणी जी के लंबे सार्वजनिक जीवन को सिर्फ एक घटना से जोड़कर देखना उचित नहीं है. जैसे नेहरूजी का करियर चीन युद्ध की हार से और इंदिरा गांधी का करियर सिर्फ आपातकाल से परिभाषित नहीं होता, वैसे ही आडवाणी जी को भी न्याय मिलना चाहिए.” थरूर ने आडवाणी को उनके 98वें जन्मदिन पर शुभकामनाएं देते हुए उन्हें “सच्चा राजनेता” बताया, जिनकी “विनम्रता और सार्वजनिक सेवा” प्रेरणादायक रही है.

कांग्रेस में मचा बवाल, पवन खेड़ा ने दी सफाई

थरूर के बयान के बाद कांग्रेस के भीतर मतभेद खुलकर सामने आए. कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा ने कहा, “डॉ. शशि थरूर अपनी बात खुद कह रहे हैं, कांग्रेस पार्टी उनके इस बयान से पूरी तरह अलग है. उनका ऐसा करना कांग्रेस की लोकतांत्रिक भावना को दर्शाता है.” यानी पार्टी ने थरूर से किनारा करते हुए भी यह जताने की कोशिश की कि उनके पास ‘स्वतंत्र राय’ रखने की जगह है. लेकिन राजनीतिक तौर पर इस बयान ने विपक्षी खेमे में सवाल खड़े कर दिए हैं कि क्या यह थरूर की ‘मध्यपंथी सियासत’ की झलक है?

सोशल मीडिया पर तीखी बहस

थरूर के पोस्ट पर सुप्रीम कोर्ट के वकील संजय हेगड़े ने कड़ी प्रतिक्रिया दी. उन्होंने लिखा, “इस देश में नफरत के बीज बोना सार्वजनिक सेवा नहीं है.” इसके जवाब में थरूर ने तर्क दिया कि “इतिहास को संतुलित दृष्टिकोण से देखना चाहिए.” बहस तब और गरम हो गई जब हेगड़े ने लिखा कि “आडवाणी की रथ यात्रा कोई एक घटना नहीं थी, बल्कि भारतीय गणराज्य की दिशा बदलने वाली लंबी यात्रा थी, जिसने 2002 और 2014 जैसी घटनाओं की नींव रखी.”

क्या है थरूर का सियासी संदेश?

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि थरूर का यह बयान महज़ एक बधाई संदेश नहीं, बल्कि एक ‘सॉफ्ट रीब्रांडिंग’ है- खुद को एक उदार, संतुलित और विचारशील नेता के तौर पर पेश करने की कोशिश. थरूर अक्सर पार्टी लाइन से हटकर बोलते हैं कभी सावरकर पर टिप्पणी हो, कभी मंदिरों पर, या अब आडवाणी पर. उनका यह रुख एक ओर उन्हें “इंटेलेक्चुअल पॉलिटिशियन” बनाता है, तो दूसरी ओर कांग्रेस के परंपरागत गुटों से टकराव भी खड़ा करता है।

 

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