क्रांतिकारी सुन्दर लाल गुप्त ने स्वतंत्रता आंदोलन में अपना पूरा जीवन न्योछावर कर दिया था
रिर्पोट — डी पी गुप्ता
सुलतानपुर। जनपद की नई युवा पीढ़ी को सुल्तानपुर के क्रांतिकारियों और वीर सपूतों जानकारी हो इसके लिए, हम सभी को प्रयास करना चाहिए इसी उद्देश्य से हमने आजादी की लड़ाई के लिए अपना सर्वस्व जीवन न्योछावर करने वाले वीर क्रांतिकारी सुंदर लाल गुप्त के बारे में विस्तृत जानकारी हेतु उनके वंशज रविकांत अग्रहरी पूजा वस्त्रालय चौक से संपर्क किया। उन्होंने अपने पूर्वज शहीद सुन्दर लाल गुप्त के जीवन पर प्रकाश डालते हुए बताया कि वर्तमान में जो भवन नगर पालिका परिषद के नाम से जाना जाता है उसका निर्माण 1874 में रानी विक्टोरिया के याद में बनाया गया था बाद में इसका नाम बदल कर सुंदरलाल मेमोरियल हॉल रख दिया गया था।
देश की आजादी की लड़ाई में अप्रतिम भूमिका निभाने वाले शहीद सुंदरलाल गुप्त जी का जन्म 13 मार्च, 1906 को सुल्तानपुर के पल्टनबाजर मोहल्ले में हुआ था। इनके पिता लल्लूराम गुप्त कलकत्ते में चांदी का व्यापार करते थे। इनकी पढ़ाई सिर्फ मैट्रिक तक ही हुई थी।
सन् 1929 सुंदरलाल जी के जीवन का टर्निंग पॉइंट साबित हुआ। वे इसी साल अपने परिवार के साथ मंसूरी गए हुए थे जहाँ हकीम अजमल खां ने उनका संपर्क इलाहाबाद (प्रयागराज) के मशहूर वकील मोतीलाल नेहरू से कराया। सन उन्नतीस में ही सुंदरलाल जी ने खादी धारण कर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की सदस्यता ले ली। मंसूरी से इनका परिवार वापस सुल्तानपुर चला आया परन्तु ये एक संन्यासी के साथ कैलाश यात्रा के लिये चले गए और 6 माह के बाद लौटने पर कांग्रेस के संगठन कार्य में लग गए।
स्वतन्त्रता सेनानी सुंदरलाल गुप्त जी ने आजादी मिलने तक विवाह न करने की प्रतिज्ञा कर ली थी। जिले भर में साइकिल से घूमते थे और नई पीढ़ी को आजादी की लड़ाई लड़ने के लिए प्रेरित् करते थे। सन 1937 से लेकर सन् 1942 तक के राष्ट्रीय आंदोलनों में इनकी सक्रिय हिस्सेदारी रही। ये 17 बार जेल भी गए। सन 1937 में तत्कालीन संयुक्त प्रांत (उत्तर प्रदेश) के विधान सभा चुनाव कराए गए जिसमे सुंदरलाल गुप्त ने सुल्तानपुर सदर विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस के उम्मीदवार बन कर चुनाव लड़ा और भारी मतों से चुनाव जीता। जिसके चलते वे सुल्तानपुर शहर के पहले विधायक बने।
अदम्य साहसी सुन्दरलाल गुप्त को अंग्रेजी हुकूमत ने जेल प्रवास के दौरान शारीरिक के साथ- साथ मानसिक रूप से भी प्रताड़ित किया था। उन्हें कारावास के दौरान बीमारी के इलाज के बहाने विषाक्त इंजेक्शन दिए गए जिसके कारण धीरे-धीरे उनकी आंखों की रोशनी समाप्त हो गयी। फिर भी ब्रिटिश सरकार ने उनकी शारीरिक यातनाओं में कमी नही किया। लगातार उन्हें कभी जेल में रखा जाता तो कभी बाहर कर दिया जाता। भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान सुन्दरलाल गुप्त के अदम्य साहस, जुझारू भावना तथा प्रखर देशभक्ति से घबराई ब्रिटिश सरकार ने कई बार उनकी हालत गंभीर होने के बावजूद कारावास में डाल दिया।
इस तरह जीवन भर आजादी के लिए लड़ने वाले इस महान स्वतन्त्रता सेनानी का सन् 10 दिसंबर 1942 को निधन हो गया। सुल्तानपुर के इस वीर सपूत को हम नमन करते है। उम्मीद करते है कि हम सभी देशवासी सुल्तानपुर जनपद के शहीद सुन्दरलाल गुप्त जी के तपोमय जीवन,उज्ज्वल चरित्र और बलिदान से देश का हर युवा प्रेरणा लेता रहेगा। आज भी शहीद सुन्दरलाल गुप्त जी के वंशज सुल्तानपुर चौक मे विभिन्न फर्म बद्री प्रसाद सूरज मल सर्राफ ,पूजा वस्रालय ,पूजा इंपोरियम आदि नाम से चौक सुलतानपुर में व्यापार करके जीवन यापन कर रहे हैं। देश की जनता इस परिवार की सदैव ऋणी रहेगा।