एक ऐसा प्राचीन घाट, जहां स्नान करने से मिलता है जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति
हरिद्वार। उत्तराखंड की धर्म नगरी हरिद्वार विश्व में एक तीर्थस्थली है. हरिद्वार को कुंभ नगरी भी कहा जाता है. हरिद्वार में हर की पैड़ी पर अमृत की बूंदें गिराने के कारण यहां हर 12 साल बाद महाकुंभ का आयोजन बहुत बड़े स्तर पर होता है. महाकुंभ में हजारों लाखों साधु-संत और देश-विदेश से लोग गंगा में स्नान करने आते हैं. वहीं हरिद्वार के प्राचीन गंगा घाटों में से नील घाट है, जहां पर गंगा स्नान और पूजा-पाठ करने की धार्मिक मान्यता बताई गई है, जो कई धार्मिक ग्रंथों में भी लिखी हुई है. नील घाट नीलधारा के किनारे बना हुआ है.
हरिद्वार के प्राचीन गंगा घाटों में नील घाट का विशेष महत्व बताया गया है, जहां पर गंगा स्नान करने, पूजा-पाठ और पित्रों के निमित कार्य करने से मोक्ष मिलने की धार्मिक मान्यता बताई गई है. नील घाट पर मुख्य रूप से रोजाना लोग गंगा स्नान करते हैं और यहां पर पूजा-पाठ भी करते हैं.
पांच प्राचीन घाटों में है शामिल
नील घाट की अपनी ही प्राचीन मान्यता है. इस घाट पर स्नान, श्राद्ध तर्पण और पूजा-पाठ करने का विशेष महत्व बताया जाता है. इस घाट का वर्णन धार्मिक ग्रंथों में भी किया गया है. नील घाट पर प्रसिद्ध मंदिर बने हुए हैं. नील घाट पर दक्षिण काली सिद्ध पीठ मंदिर, चंडी देवी मंदिर, गौरी शंकर महादेव मंदिर, निलेश्वर महादेव आदि मंदिर इस घाट किनारे स्थित है, जहां पर पूजा पाठ करने का विशेष महत्व है. हरिद्वार में स्थित नील घाट एक प्राचीन घाट है, जो पांच गंगा घाटों में भी शामिल है, जिन्हें सबसे प्राचीन गंगा घाट माना जाता है.