आपातकालीन सख्ती के दौरान प्रशासन ने जबरन ग्यारह रुपए बीस पैसे किलो की दर से मिठाई बेचवाई थी
राष्ट्रीय पर्व पर अधिकारियों द्वारा मुफ्त लड्डू लेने का चलन इमरजेंसी से ही शुरू हुआ था जो आज भी कहीं न कहीं बदस्तूर जारी है
डी पी गुप्ता
सुलतानपुर । देश में 25 जून 1975 से 21 मार्च 1977 तक का 21 महीने की अवधि में आपातकाल घोषित हुआ था। तत्कालीन राष्ट्रपति फ़ख़रुद्दीन अली अहमद ने तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी के कहने पर भारतीय संविधान की अनुच्छेद 352 के अधीन आपातकाल की घोषणा कर दी। स्वतंत्र भारत के इतिहास में यह सबसे विवादास्पद और अलोकतांत्रिक काल था। आपातकाल में चुनाव स्थगित हो गए तथा नागरिक अधिकारों को समाप्त करके मनमानी की गई। इस दौरान हर तबके को परेशानी झेलनी पड़ी। गलत सरकारी नीतियों के चलते महंगाई बढ़ गई थी जिसके कारण हर व्यापार में सरकारी हस्तक्षेप बढ़ गया था। सरकार अपनी नीतियां सुधारने के बजाय व्यापारियों के मूल अधिकार छीनने में लग गयी । सैकड़ों व्यापारियों को जेल ठूंस दिया गया। दुकानदारों में भय का माहौल था। इमरजेंसी के दौरान हुए अत्याचार की जद में मिष्ठान व्यवसायी भी आ गये थे। इस पर चर्चा करते हुए मिठाई व्यापारी राम प्रकाश जी जो कि उस वक्त किशोरावस्था में थे, ने बताया कि तत्कालीन प्रशासन ने मिठाई व्यापारियों पर जबरन दबाव डाल कर बीस प्रतिशत दाम कम करने के लिए मजबूर कर दिया था। उस समय चौदह रूपये किलो मिठाई बिकती थी जिसे 11 रुपए 20 पैसे प्रति किलो बेचनी पड़ी थी। उस समय के बारे में बताते हुए व्यापारी डी पी गुप्ता ने बताया कि इमरजेंसी के दौरान वे बहुत छोटे थे पर अपने दिवंगत पिता के मुख से सुने थे कि चीनी पर सरकारी नियंत्रण था। एक दुकानदार को महीने में चालीस किलो चीनी मिलती थी। उस पर भी आये दिन अधिकारी दुकानों में छापा मारकर जांच पड़ताल करते थे अगर चीनी तय मात्रा से ज्यादा निकल जाती थी, तो दुकानदार के खिलाफ कार्यवाही हो जाती थी। इस चक्कर में कई व्यापारियों को जेल जाना पड़ा था। डर की वजह से तमाम दुकानदार कारोबार कम कर दिए थे और कुछ ने तो दुकान बंद ही कर दिए थे। इमरजेंसी के दौरान ही राष्ट्रीय पर्व स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस पर अधिकारियों द्वारा ध्वजारोहण के बाद बंटने वाले लड्डू को दुकानदारों से मुफ्त में लिए जाने की कुप्रथा की शुरुआत हुई थी जो आज भी कहीं न कहीं बदस्तूर जारी है। आजाद भारत का नागरिक होने पर भी राष्ट्रीय पर्व के दिन जब दबाववश मुफ्त लड्डू देना पड़ता है तो कहीं न कहीं व्यापारी का राष्ट्रवादी हृदय आहत जरुर होता है।