अगर पुलिस एफआईआर न दर्ज करे तो पीड़ित के पास क्या है क़ानूनी उपचार
सुलतानपुर। समाज में अक्सर देखा गया है कि पुलिस एफआईआर लिखने में आनाकानी करती है इस समस्या पर पत्रकार एकता संघ के राष्ट्रीय सचिव डी पी गुप्ता ने वरिष्ठ अधिवक्ता कालिका प्रसाद मिश्रा से चर्चा किया तो उन्होंने इस पर विस्तार से बताते हुए कहा कि हमारा समाज विधि व्यवस्था के अनुसार ही चलता है। संविधान मूल विधि है जिसके अनुसार अन्य कानूनों का संचालन होता है।इसी के तहत भारतीय दंड संहिता 1860 और उसकी प्रक्रिया के लिये अपराध प्रक्रिया संहिता 1973 की व्यवस्था की गई है। जब कोई व्यक्ति कोई भी ऐसा कार्य करता है जो दंड संहिता के तहत किसी कानून का उलंघन करता पाया जाता है तो वह कार्य अपराध की श्रेणी में आता है।
जिस व्यक्ति के साथ कोई अपराध हो गया है तो उसे पीड़ित और जिसने किया है उसे अभियुक्त या आरोपी कहते है।अब पीड़ित व्यक्ति को सीधे थाने जाना चाहिये। वहाँ उसे थाना प्रभारी या एसएचओ (स्टेशन हाऊस ऑफ़िसर) को अपनी आपबीती सरल शब्दों में लिखित या मौखिक बतानी चाहिये यदि मौखिक है तो पुलिस अधिकारी उसे अपने मातहत से लिखवायेगा और यदि वह लिखित है तो अपराध प्रक्रिया संहिता की धारा 154 के तहत दर्ज कराकर कार्यवाई शुरू करेगा।
अब यदि पीड़ित व्यक्ति की एफआईआर थाने पर दर्ज नहीं हुई तो क्या करेगा उसके आगे की प्रक्रिया धारा 156 के पैरा 3 में दी गई है , क्योंकि अमूमन पुलिस सुनती नहीं और शायद क़ानून निर्माताओं को इसका आभास था की यदि पुलिस नहीं सुनेगी तो क्या होगा? ऐसे में अगर थाने पर पुलिस नहीं सुनती तो पीड़ित को चाहिये अपनी उसी शिकायत को संक्षेप शब्दों में लिखकर जिले के संबंधित पुलिस अधीक्षक को डाक द्वारा भेज दे, ध्यान रहे पुलिस अधीक्षक के पास जाने की ज़रूरत नहीं होती है। अगर वहाँ से भी एफआईआर न दर्ज हो और कोई कार्यवाई न हो तो पीड़ित व्यक्ति को सीधे दीवानी में संबंधित मजिस्ट्रेट के पास इसी धारा 156 की उपधारा 3 के तहत जाना चाहिये। साथ में वह थाने पर दिये हुए और पुलिस अधीक्षक को भेजे हुए प्रार्थना पत्र की कॉपी ज़रूर होनी चाहिये। फिर वह मजिस्ट्रेट संबंधित थाने से रिपोर्ट तलब करेगा और रिपोर्ट के आधार पर थाने को एफआईआर दर्ज करने का आदेश देगा। यदि यहां भी पीड़ित की एफआईआर नहीं दर्ज होती तो उस व्यक्ति को उस मजिस्ट्रेट के आदेश के विरूद्ध जिला जज के यहां पुनरीक्षण यानी रिवीज़न दाखिल करना चाहिये।अगर जिला जज के यहां से भी कार्यवाई से पीड़ित संतुष्ट न हो तो वह हाईकोर्ट – सुप्रीम कोर्ट तक जा सकता है। इस प्रकार यह व्यवस्था अपराध के विरूद्ध कार्यवाई या एफआईआर दर्ज कराने के लिये क़ानून में दी गई है।